हर बच्चा गर्मियों की छुट्टी के बाद स्कूल जाने को लेकर उत्साहित होता है, लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो अपनी तकलीफों को ताकत बनाकर दूसरों के लिए मिसाल बन जाते हैं। देवरिया जिले की पिंकी चौहान ऐसी ही एक प्रेरणादायक शख्सियत बन चुकी हैं। कभी खुद कालाजार से जूझ चुकी पिंकी अब बच्चों और गांववासियों को इस जानलेवा बीमारी के प्रति जागरूक करने में जुटी हैं।
जहां खुलते हैं स्कूल, वहीं खुल जाती है पिंकी की “कालाजार पाठशाला”
जैसे ही जुलाई में स्कूल खुले, पिंकी चौहान ने भी अपनी मुहिम को और तेज़ कर दिया। वह स्कूल के बच्चों के बीच पहुंचती हैं और अपने जीवन की सबसे कठिन बीमारी—कालाजार—से जुड़े अनुभव साझा करती हैं। पिंकी अब लोगों के बीच “साइकिल वाली दीदी” के नाम से मशहूर हो चुकी हैं, क्योंकि वह अपनी साइकिल से गांव-गांव जाकर लोगों को इस रोग से लड़ने का साहस और तरीका बताती हैं।
अपनी कहानी को बनाया हथियार
पिंकी जब मात्र 12 साल की थीं, तब कालाजार की चपेट में आई थीं। इलाज के बाद वह ठीक तो हो गईं, लेकिन एक साल बाद इस बीमारी ने फिर हमला किया। पोस्ट-कालाजार संक्रमण ने उनकी त्वचा पर भी असर डाला, जिसने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से झकझोर दिया। पर इस दर्द को उन्होंने अपने अंदर बंद नहीं किया, बल्कि इसे लोगों को जागरूक करने का जरिया बना लिया।
ब्लैकबोर्ड पर बालू मक्खी का चित्र, बच्चों को देती हैं जिंदगी का पाठ
पिंकी की पाठशाला हर जगह चलती है—कभी स्कूल में, तो कभी गांव की गलियों में। वह ब्लैकबोर्ड पर बालू मक्खी (जो कालाजार फैलाती है) का चित्र बनाकर बच्चों को यह समझाती हैं कि यह रोग कैसे फैलता है और इससे कैसे बचा जा सकता है। उनकी बातें बच्चों के मन में बैठ जाती हैं, क्योंकि वह खुद इस रोग की साक्षात पीड़िता रह चुकी हैं।
आईआरएस छिड़काव में भी निभा रहीं अहम भूमिका
बनकटा ब्लॉक के जिन 8 गांवों में कालाजार की समस्या है, वहां पिंकी सिर्फ जागरूकता नहीं फैला रहीं, बल्कि सरकार की ओर से होने वाले इंडोर रेसिडुअल स्प्रे (IRS) कार्यक्रम में भी सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं। जिला मलेरिया अधिकारी सीपी मिश्रा बताते हैं कि पिंकी गांव के लोगों को छिड़काव के लिए तैयार करती हैं और टीम को हर संभव सहयोग देती हैं।
परिवार बना ताकत
पिंकी को इस अभियान में अपने माता-पिता का पूरा समर्थन मिल रहा है। उनके परिवार ने न सिर्फ उनका इलाज करवाया, बल्कि इस मिशन में उनका मनोबल भी बढ़ाया। यही वजह है कि आज पिंकी अकेली नहीं हैं—वह एक पूरे समुदाय को सुरक्षित रखने की लड़ाई लड़ रही हैं।
निष्कर्ष: एक छोटी सी कोशिश, बड़ी सोच
पिंकी चौहान की यह मुहिम दिखाती है कि किसी भी बीमारी से सिर्फ दवा से नहीं, बल्कि जागरूकता से भी लड़ा जा सकता है। वह सिर्फ एक ‘कालाजार चैम्पियन’ नहीं हैं, बल्कि एक बदलाव की प्रतीक बन चुकी हैं। “साइकिल वाली दीदी” अब हर गांव में उम्मीद की एक रौशनी लेकर पहुंचती हैं।