देवरिया की सड़कों पर सोमवार को कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला। हजारों की संख्या में पहुंचे शिक्षक, अपनी पीड़ा और आक्रोश को आवाज़ देने के लिए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के सामने एकजुट हो गए। यह सिर्फ एक विरोध नहीं था, बल्कि अपने आत्मसम्मान और अधिकारों की लड़ाई थी। शिक्षक संघ का कहना है कि 1 सितंबर 2025 को जारी टीईटी अनिवार्यता आदेश उनके लिए बोझ और अन्यायपूर्ण है।
असंवैधानिक करार दिया आदेश
उत्तर प्रदेशीय माध्यमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष शैलेन्द्र कुमार सिंह ने इस आदेश को सीधा-सीधा असंवैधानिक बताया। उनका कहना था कि देश के किसी भी सरकारी विभाग में कार्यरत कर्मचारियों के लिए इस तरह की शर्त लागू नहीं की जाती, फिर केवल शिक्षकों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
अनुभव और उम्र की अनदेखी
जिला मंत्री अमित प्रकाश यादव ने सरकार से मांग की कि 20 से 25 साल तक सेवा दे चुके शिक्षकों को इस आदेश से बाहर रखा जाए। वहीं वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ. सव्य प्रकाश सिंह ने 50 वर्ष से अधिक उम्र वाले शिक्षकों की समस्या को सामने रखा। उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि बहुत से शिक्षक इंटरमीडिएट या अन्य योग्यता के आधार पर नियुक्त हुए थे, अब उनके लिए अचानक नई शर्तें थोपना अन्याय है।
अधिनियम और संशोधन पर सवाल
जिला संयुक्त मंत्री ऋषिकेश जायसवाल ने 2009 के मूल अधिनियम का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि 2000 से पहले नियुक्त शिक्षकों को इसमें छूट दी गई थी। उनका आरोप है कि 2017 में बिना राजपत्र जारी किए चुपचाप संशोधन कर दिया गया, जिससे हजारों शिक्षकों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
दिल्ली तक आंदोलन की चेतावनी
प्रदर्शन में मौजूद शिक्षक नेताओं ने साफ चेतावनी दी कि अगर यह आदेश वापस नहीं लिया गया, तो आंदोलन की गूंज सिर्फ देवरिया तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि दिल्ली की गलियों तक पहुंचेगी। जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार त्रिपाठी, महामंत्री विजय भारत सिंह और प्रदेश उपाध्यक्ष अवधेश सिंह ने मंच से साफ शब्दों में कहा कि यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक शिक्षकों को न्याय नहीं मिल जाता।
महिलाओं की भी रही बड़ी मौजूदगी
इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में महिला शिक्षक भी शामिल हुईं। सभी के चेहरे पर एक ही सवाल था—”क्या हमारे वर्षों की सेवा और मेहनत को इतनी आसानी से नकार दिया जाएगा?”
कार्यक्रम का संचालन जिला संयुक्त मंत्री गोपकेश जायसवाल और प्रभारी संदीप कुमार द्विवेदी ने किया। दिन भर चली नारेबाजी और जोश से भरे भाषणों ने साबित कर दिया कि शिक्षक अब चुप बैठने वाले नहीं हैं।