जब कोई छोटे शहर या गाँव का युवा बड़े सपने देखता है, तो अक्सर उसे ताने मिलते हैं – “यहाँ से क्या होगा?”, “दिल्ली-मुंबई की बात और है!” लेकिन देवरिया जैसे पूर्वांचल के एक छोटे से ज़िले से निकले कुछ युवाओं ने न केवल यह सोच बदल दी, बल्कि एक ऐसा कदम उठाया जो अब लाखों लोगों की जिंदगी को सीधे छूने जा रहा है।
हम बात कर रहे हैं O-Parchee की – एक हेल्थ स्टार्टअप जो देवरिया के युवाओं ने मिलकर शुरू किया, और अब इसका नाम देशभर में गूंज रहा है। इस स्टार्टअप की सबसे खास बात यह है कि इसका मकसद सिर्फ कमाई नहीं, बल्कि गाँवों तक सस्ती, तेज़ और स्मार्ट हेल्थकेयर पहुँचाना है। और इस मिशन को और भी मजबूत बना दिया है हाल ही में हुई इसकी साझेदारी ने।

अब O-Parchee ने हाथ मिलाया है देश की अग्रणी हेल्थटेक कंपनी Doxper के साथ, जिसकी वैल्यूएशन 250 करोड़ रुपये से भी अधिक है। यह करार केवल एक बिज़नेस डील नहीं, बल्कि गाँवों की गलियों में उमड़ती उम्मीदों की आवाज़ है।
देवरिया के दिल से निकला था सपना
O-Parchee की शुरुआत अनन्या त्रिपाठी और शशिकांत त्रिपाठी ने की थी। इस सपने को आगे बढ़ाया हरिओम संडिल्य (Chief Growth Officer) और राज दुबे ने। सभी की जड़ें देवरिया से जुड़ी हैं, और इनका दिल भी वहीं धड़कता है। जब उन्होंने देखा कि गाँव के लोग थोड़ी-सी बीमारी में भी घंटों लाइन में लगे रहते हैं, अच्छे डॉक्टर दूर हैं, और इलाज समय पर न मिलने से छोटी समस्याएं बड़ी हो जाती हैं – तभी ये विचार आया कि क्यों न एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जाए, जो सस्ते में तेज़ इलाज दे सके।
और बस, यहीं से शुरू हुई O-Parchee की कहानी।

अब गाँवों में भी मिलेगा डिजिटल इलाज
इस साझेदारी के बाद O-Parchee और Doxper मिलकर गाँव-गाँव डिजिटल प्रिस्क्रिप्शन और मेडिकल रिकॉर्ड की सुविधा ले जाएंगे। इसका मतलब ये हुआ कि अब मरीजों का सारा इलाज रिकॉर्ड मोबाइल पर सुरक्षित रहेगा, डॉक्टरों को बार-बार सब कुछ समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, और इलाज भी अधिक सटीक और तेज़ होगा।
इतना ही नहीं, दवाइयों की होम डिलीवरी की सुविधा भी शुरू होगी। यानी, जो लोग दवा के लिए शहर नहीं जा सकते, वे अब अपने घर पर ही इलाज और दवा दोनों पा सकेंगे।
सिर्फ स्टार्टअप नहीं, यह एक आंदोलन है
O-Parchee के CGO हरिओम संडिल्य ने कहा,
“हमने देवरिया में लोगों की लंबी लाइनों और स्वास्थ्य सेवा की कमी को नजदीक से देखा है। Doxper के साथ यह साझेदारी हमारे लिए सिर्फ एक व्यावसायिक डील नहीं है, बल्कि एक मिशन को और मजबूत बनाने का जरिया है।”
वहीं टीम के एक और प्रमुख सदस्य राज दुबे ने भावुक होकर कहा,
“यह केवल देवरिया या पूर्वांचल की जीत नहीं है – यह हर छोटे शहर के सपनों की जीत है। हमारा सपना है कि O-Parchee के ज़रिए गाँवों में भी स्मार्ट हेल्थकेयर पहुंचे।”

जब सपने छोटे शहरों में पलते हैं…
O-Parchee की कहानी बताती है कि सपनों के लिए बड़ा शहर ज़रूरी नहीं, बड़ा सोच और जज़्बा चाहिए। देवरिया जैसे छोटे जिले से निकलकर एक ऐसा स्टार्टअप खड़ा करना जो अब देश की बड़ी हेल्थटेक कंपनियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है – यह हर उस युवा के लिए उम्मीद की किरण है जो बदलाव लाना चाहता है।
शुरुआती रिसर्च चरण में ही O-Parchee 10,000 से ज़्यादा लोगों को सेवाएं दे चुका है। और अब जब यह Doxper के साथ जुड़ चुका है, तो आने वाले समय में लाखों ज़िंदगियों को छूने का वादा करता है।
निष्कर्ष
O-Parchee की यह यात्रा केवल एक स्टार्टअप की कहानी नहीं है – यह हर उस ग्रामीण परिवार की आशा है जो अब इलाज के लिए शहर नहीं दौड़ेगा, हर उस माँ की राहत है जिसकी दवा अब उसके दरवाज़े तक पहुंचेगी, और हर उस युवा की प्रेरणा है जो गाँव से भी बदलाव की लहर उठा सकता है।
डिस्क्लेमर:
यह लेख प्राप्त जानकारी पर आधारित है और इसका उद्देश्य जनहित में सूचना साझा करना है। O-Parchee और Doxper से जुड़ी सभी औपचारिक जानकारियाँ संबंधित संस्थाओं द्वारा ही प्रमाणित की जाएंगी। चिकित्सा या व्यावसायिक निर्णय लेने से पहले आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि अवश्य करें।