जब अपने देश की मेहनत, तकनीक और आत्मनिर्भरता की पहचान दुनिया तक पहुंचती है, तो गर्व की अनुभूति अपने आप हो जाती है। कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक पल अब बिहार के सारण जिले के छोटे से कस्बे मढ़ौरा में गढ़ा जा रहा है, जहां बना हर रेल इंजन अब भारत की मेहनत और गुणवत्ता का प्रतीक बनकर दक्षिण अफ्रीका के गिनी देश की ओर रवाना होगा।
रेलवे के मढ़ौरा स्थित लोकोमोटिव कारखाने में तैयार हो रहे ये आधुनिक रेल इंजन अब विश्व बाजार में भारत की तकनीकी दक्षता का परिचय देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जून को इन इंजनों की पहली खेप को हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे, जो भारत के तकनीकी आत्मबल और वैश्विक पहुंच की एक शानदार झलक होगी।

आत्मनिर्भर भारत की ताकत बना मढ़ौरा
इस कारखाने में बनने वाले 150 लोकोमोटिव इंजनों की आपूर्ति भारत गिनी को तीन वर्षों में करेगा, जिसकी कुल लागत 3,000 करोड़ रुपये से अधिक है। इन इंजनों को ब्रॉड गेज, स्टैंडर्ड गेज, और केपगेज ट्रैक पर चलने के लिए डिजाइन किया गया है, जो इस परियोजना की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता और विविधता को दर्शाता है।
रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक (सूचना एवं प्रचार) दिलीप कुमार के अनुसार, इस साल 37 इंजन, अगले साल 82 और फिर 31 इंजन गिनी को भेजे जाएंगे। ये सभी इंजन गिनी में लौह अयस्क परियोजना के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में मदद करेंगे। इस ऐतिहासिक समझौते को भारत ने वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली के ज़रिए हासिल किया है, जो भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को दर्शाता है।
भारतीय तकनीक की चमक: आधुनिक और शक्तिशाली इंजन
इन सभी इंजनों में एयर कंडीशंड केबिन होंगे, जिससे चालकों को बेहतर कार्य परिस्थितियाँ मिलेंगी। तकनीक इतनी उन्नत है कि दो इंजन मिलकर 100 बोगियों को आसानी से खींच सकते हैं, वो भी अधिकतम स्वीकार्य गति के साथ। यह दर्शाता है कि भारत अब सिर्फ अपने देश की ज़रूरतें नहीं, बल्कि दुनिया की मांग को भी पूरा करने की क्षमता रखता है।

स्थानीय विकास और वैश्विक पहचान
इस परियोजना से मढ़ौरा का कारखाना अब एक वैश्विक लोकोमोटिव निर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा, तकनीकी प्रशिक्षण बढ़ेगा और क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होंगी। यह आत्मनिर्भर भारत की जमीनी तस्वीर है, जहां एक छोटा कस्बा अब अंतरराष्ट्रीय रेल नक्शे पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
भारत और अफ्रीका: एक नई साझेदारी की शुरुआत
इस निर्यात से सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भारत-अफ्रीका के आर्थिक और रणनीतिक रिश्ते भी और मजबूत होंगे। गिनी के साथ इस सहयोग से दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ेगा और भारत की “दक्षिण सहयोग” नीति को नई मजबूती मिलेगी।