Deoria News: विद्यालय युग्मन के विरोध में गरजा शिक्षक समाज | राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने किया ऐतिहासिक प्रदर्शन

शिक्षा सिर्फ किताबों और दीवारों तक सीमित नहीं होती, यह एक बच्चे का भविष्य, एक गाँव की आत्मा और पूरे राष्ट्र की नींव होती है। लेकिन जब उस नींव को ही हिला देने वाला कोई फैसला हो, तो आवाज़ उठना स्वाभाविक है। बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा किए जा रहे विद्यालय युग्मन (पेयरिंग) के फैसले ने प्रदेशभर के शिक्षकों को झकझोर कर रख दिया है।

इसी क्रम में आज देवरिया ज़िले में एक ऐतिहासिक और भावनात्मक दृश्य देखने को मिला, जब राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के नेतृत्व में हजारों शिक्षकों ने युग्मन नीति के खिलाफ ज़बरदस्त प्रदर्शन किया। हाथों में तख्तियां, आँखों में चिंता और दिल में विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर आक्रोश—यह प्रदर्शन सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि बच्चों के अधिकारों की पुकार थी।

मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा गया

बीएसए कार्यालय से शुरू हुआ यह विरोध मार्च नारेबाजी के साथ जिलाधिकारी कार्यालय तक पहुँचा, जहाँ शिक्षकों ने मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा। महासंघ के ज़िला संयोजक जयशिव प्रताप चंद ने कहा कि यह ज्ञापन केवल शिक्षकों का नहीं, बल्कि उन बच्चों का प्रतिनिधित्व करता है जिनकी शिक्षा इस नीति से बुरी तरह प्रभावित होगी।

उन्होंने कहा, “बिना भौतिक सर्वेक्षण, ग्राम सभा और SMC की सहमति के युग्मन का यह निर्णय न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान है, बल्कि ग्रामीण व गरीब छात्रों के शिक्षा के अधिकार के साथ अन्याय है।”

शिक्षकों का गुस्सा फूटा — “छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं”

जिला सहसंयोजक विवेक मिश्रा ने कहा, “इस प्रकार का मनमाना आदेश शिक्षक समाज को स्वीकार नहीं है। यदि अब आवाज़ नहीं उठाई गई, तो भविष्य में नौकरियों पर भी संकट आ सकता है।“

गोविन्द सिंह ने इसे आरटीई एक्ट 2009 के खिलाफ बताते हुए कहा, “विद्यालय केवल भवन नहीं होते, वे गाँव की आत्मा होते हैं। बच्चियाँ जो पहले विद्यालय जाती थीं, वे दूरी बढ़ने पर पढ़ाई से वंचित हो जाएँगी।”

अशोक तिवारी ने प्रशासन की अनदेखी पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, “छात्र संख्या में पहले से ही बढ़ोत्तरी हो रही है। अप्रैल 2025 की संख्या के आधार पर युग्मन करना अव्यवहारिक है, जबकि सितंबर 2025 तक का समय दिया जाना चाहिए।”

आशुतोष चतुर्वेदी ने कहा, “दूरी बढ़ने से ड्रॉपआउट की दर बढ़ेगी और पोषण, स्वास्थ्य, व उपस्थिति पर भी गहरा असर पड़ेगा। हम समावेशी शिक्षा चाहते हैं, अलगाव नहीं।”

एकजुट हुआ शिक्षक समाज — महिला शिक्षक संघ, अनुदेशक संघ सहित कई संगठन शामिल

इस विरोध प्रदर्शन में अनुदेशक संघ, शिक्षामित्र संघ, महिला शिक्षक संघ और अटेवा जैसे कई संगठनों ने हिस्सा लिया। मंच से विज्ञान सिंह, नीलम सिंह, मदन पटेल, अभिषेक गुप्ता और जय सिंह यादव ने शिक्षकों की भावनाओं को स्वर देते हुए सरकार से युग्मन नीति वापस लेने की माँग की।

हज़ारों की संख्या में जुटे शिक्षक

इस प्रदर्शन में राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की ज़िला और ब्लॉक इकाईयों के हज़ारों शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भाग लिया। प्रदर्शन में सत्यप्रकाश त्रिपाठी, आशुतोष नाथ तिवारी, शशांक मिश्र, ज्ञानेश यादव, प्रमोद कुशवाहा, वागीश दत्त मिश्र समेत अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहे।

ब्लॉक स्तर से भी जितेन्द्र साहू, देवेन्द्र सिंह, एहसान उल हक, वीरेन्द्र यादव, संतोष त्रिपाठी जैसे सक्रिय संयोजकों ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।

निष्कर्ष

यह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं था, यह एक चेतावनी थी—कि अगर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा, तो शिक्षक समाज चुप नहीं बैठेगा। विद्यालय युग्मन की यह नीति गाँवों की बेटियों को शिक्षा से वंचित कर सकती है, छात्रों को हतोत्साहित कर सकती है और शिक्षा के समावेशी स्वरूप पर चोट कर सकती है।

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